लड़ते धर्मों के नाम पर दुनिया में.., एक ऐसा मंजर देखा..।
हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई को, एक संग इबादत करते देखा..।
किसी ने बजाया शंख तो.., किसी को अज़ान देते देखा..।
कोई बजाता तालियां तो..,कहीं पर थाली का शोर देखा..।
बढ़ते बढ़ते कोरोना में.., कुदरत का ऐसा मंजर देखा..।
पंछीयो को उड़ते गगन में.., और इंसानों को पिंजरे के अंदर देखा..।
देखा उनका भी सर झुकते.., जो कभी कहा करते “कहां है खुदा हमारे लिए”..?
आज सभी के मुंह से, “अल-मदद,अल-मदद” कहते-सुनते देखा…।
देखा देश में एक ऐसा भी मंज़र.., डॉक्टर के शक्लो में फरिश्तों को देखा..।
देखा उस दंपति को भी.., फर्ज निभाते-निभाते अपनी जानों को ग्वांते देखा..।
लिख रहा है खुदा, जाने कौन-सी कलम से तकदीर..।
खुशहाल दुनिया में., कयामत का-सा मंजर देखा….।
खड़े-खड़े यहां गिर रहे हैं., पड़े-पड़े यहां से सड़ रहे हैं..।
ना गुस्ल है, ना कफन है, ना जनाजे का दस्तूर है..।
पता चला ऐ इंसान..!इबादत से कितना दूर है..।
ढेर लगे हैं लाशों के.., एक साथी ना उठाने वाला देखा..।
कहते जो के साथ है हमेशा.., हाथ तक लगाते डरते देखा..।
सांसों से उलझते डोर को.., सुलझाने जैसा खेल देखा..।
जो कभी ना रखते रुमाल तक मुंह पर.., आज उनको “पेटी-पैक” देखा…।
क्या पूछे कयामत कब आएगी..? कयामत-सा मंजर आज देखा…।
गुनाहों को छोड़., नेकीयों का-सा मंजर थोड़ा आज देखा..।
इबादत को तर्क किए लोगों को भी.., आज इबादत करते देखा..।
एक ज़लज़ले ने, दुनिया में हर रोग को भुला दिया..।
कोरोना-कोरोना के शोर ने.., लाखों में इमां जगा दिया…।
बिन अपनों के ही लोगों को..,श्मशानो में जलते देखा..।
हंस्ती-खेलती दुनिया में, उजड़ी बस्ती-सा मंजर देखा..।
पल-पल बढ़ते वक्त में.., सांसों को फिर घटते देखा..।
हाय..!यह कैसा मंजर देखा..।
उफ्फ…!यह कैसा मंजर देखा..।
heart touching…. Allah sbki hifazt frmaye….aamin
آمن
Superb line jld hi sb thik hoga ….
آمن