Latest Updates

एक सब्र ऐसा भी../#सब्र /#खुशी /#गम ..!

कौन कहता है “सब्र” सिर्फ “लड़कियां” ही करती है….,??

कभी उनको भी देखना…, जो हर खुशी को “ताक” पर रखकर अपनों से “दूर” होते हैं…,

कभी देखना किसी “देसी को…,जो दो वक्त की रोटी के लिए.., “परदेसी” ही बन जाते हैं…,

जली-कटी ,”सुनकर-सेहकर” ,अक्सर “भूखे पेट” सो जाते हैं..!

कौन कहता हैं, “मां का जिगरा”..,ही “भूख” को निभाता है..???

कभी देखना किसी “बाप” को भी..,जो “पानी” पीकर रातों को गुजारता है..,

खुशी ना मिले हम “लड़कियों” को तो सर पे घर उठाती है…..!

कभी देखना उस शख्स को जिसके करीब भी “खुशीयां” तक नहीं जाती है…,

ईद पर आई नई “ड्रेस” फिर भी कमीयां निकालती हैं …???

कभी देखना उस बंदे को जो “फटे-पुराने कपड़ों” को नया बताकर “नमाजो़” को जाता है..,

तुम क्या जानो “कोई शख्स” कितनी “तकलीफ” उठाता है..,????

“कभी पिता.., कभी पति.., कभी भाई …,तो कभी फौजी”.., बन वह कदम-कदम सब्र निभाता है..,

कभी जो आए “याद घर की” तो “आंखों को भर” लाता है..,

चुपके से बेठा़..! अपनों की फिक्र में.., खूब सहता जाता है..,

क्यों कहते कि “सब्र” सिर्फ लड़कीयां ही कर पाती है???

तुम भी देखो…,कभी किसी को..,!

जो पग-पग “सब्र” निभाता है ….,

जब “राह” में रखी रोटी को भी..,”धो-धो” कर वह खाता है…,

बिन “सब्जी”.., बिन “स्वाद” ही., “पेट” भरे जाता है..,

जब छोटी-छोटी चीजों की “दुकानें”…,”बुढ़ापे” में वह लगाता है..,

सच कहूं..,सारा “सब्र”.., बस वही “सच्चा” कहलाता है..,

जब करें “गलती” हम.., तो वह सुनकर “चुप” हो जाता है,

फिर भी लुटाकर “प्यार” हम पर.., हमें खूब “खिलाता” है..,

यकीन मानो.. “औरत” से ज्यादा सब्र “वहीं” कर पाता है..!

क्यों कहूं मैं उसको “छोटा”…,और मेरे सब्र को “बड़ा”…???

दो पल लगते “आंसू” बहाने ,और मेरा सब्र ही “टूट” जाता है…!

“पत्थर” बन-कर फिर भी वह “मर्द”.., सब्र को निभाता है..,

सब्र को निभाता है…..!!

2 Replies to “एक सब्र ऐसा भी../#सब्र /#खुशी /#गम ..!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.