बहुत खफा हैं…, आज दिल मेरा मुझसे…..,
कहने लगा तेरी मजबूरियों में मेरा सुकुं क्यूं गुम हैं…???
देखती सब कुछ “तू” दुनिया का…,
पर आंखे मेरी क्यूं नम हैं…???
तू तो हंस जाती हैं.., दुनिया के दिख जाने पर…,
अन्दर रोता मेरा दिल…, बार- बार तन्हा हो जाने पर…,
तू तो कहती झूठ लोगों से…, झूठ ही मुस्का जाती हैं..!
हालत ना पूछता कोई मेरी…,
तेरी हंसी…, हाल ना मेरा बयां होने देती हैं..!
छुपा लेती हैं तेरी हंसी…, मेरी हर तकलीफ को…,
अटका देती हैं तेरी आवाज़…., मेरी हर चीख को…!
अटक- अटक के हलक में तेरे …, जाने कैसे अटका हूं मैं..??
गर जो निकलीं चीख मेरी.., सब कुछ तू भुला देगी…!
आंखे रोएंगी.…, होठ बिलखते…, सूबकी तक चढ़ा देगी….!
ना कर खुश होने का ढोंग.., ये दुनिया रूप बदलती हैं…!
दिल खोल कर रों दे एक बार…, क्यूं मुखौटा पहनती हैं..??
हां…, बोल तड़प बसी हैं दिल में…, हर बार तड़प तू जाती हैं..!
अन्दर ही अन्दर घुट- घुट कर …., कितना तू मुझको जलाती हैं..!
दिल हूं तेरा…, हर एक लम्हा…, साथ तेरे धड़कता हूं…!
जिस्म ना सही हूं मैं तेरा…, पर जिस्म का तो हिस्सा हूं…!
लगजा गले एक बार उसके…, ये दिल काबू आ जाएगा..!
होगा दीदार उसका तो.., आंखों को सूकुं मिल जाएगा…!
पर ना मानेगी बात तू मेरी…, अक्ल से तेरे वाक़िफ हूं…!
खफा हूं तुझसे बहुत ज्यादा.., एक पल ना तुझसे राज़ी हूं…!
करती रह तू ढोंग ख़ुशी का…, हर पल मैं तेरे साथ हूं..!!