ऐ जिन्दगी क्या क्या सितम बताए तूझे…,
तू तो खामोशी को समझती हैं….।
हजारों भिड़ है दिल में मेरे…..,
फिर भी तन्हाई-सी बसती हैं…।।
ज़बान कहती है…, बोल डाल….,
क्यूं-कर ये जूल्म सहे….।
दिल कहता है सब्र कर…,
सब्र से हर चीज मिलती हैं…।।
कभी खूशी कभी गमी…,
कभी हंसी तो कभी नमी.., में जिंदगी ये कटती हैं…।
इतना शोर होने पर भी….,
खामोशी दिल में चूभती हैं…।।
हां…, नहीं है अल्फ़ाज़ ….,
आज दर्द कहने को….।
शायद अब दिल में….,
तन्हा-तन्हा तन्हाई.. ओर तन्हाई बसती हैं…।।