आज कुछ नहीं मेरे पास लिखने को….,
आज कुछ नहीं अल्फाज इन लबों से कहने को…!
यूं तो रक्षाबंधन, दोस्ती दिवस सभी मेरे नजदीक है..,
पर यह खामोशी भरी तन्हाई…..!
इसमें कुछ नहीं बचा बताने को…!
मर्ज कहूं….,दर्द कहूं..,या खुशी कहकर सब सह लूंगी मैं..।
बस खामोश बैठ तन्हा…, खामोशी ही सुन लूं मैं…।
कानों में मेरे , सूनेपन की.., ख़ामोशी-सी ही चुभती है…।
दिल-दिमाग सब मेरा., बस खाली-खाली-सा रहता है..।
ना एहसास है..,ना जज्बात है…, मुर्दा-सा खुद को महसूस किया है…।
घबराया दिल.., खाली दिमाग…, रगों में दौड़ता बस खून है…।
यह भी रुक जाए दोडना तो…, जिस्म को मेरे सुकून है..।
तलब लगी उस मलाइका से…, मिलने की बस मुझे…।
जाने क्यों उस मलाइका के …, दीदार के मुंतजिर है।।