हम थे यारो दिल फेंक आशिक़…,
मोहब्बत में ज़िन्दगी बिताते थे.,
हर इक लम्हा.., हर एक पल में..,
बस मोहब्बत ही लुटाते थे…!
कभी एक दीदार को..,
हर मुश्किल पार कार जाते थे…,
कभी एक आवाज सुनने को ,
जाने कितने पेतडे आजमाते थे…!
मेहबूब का चेहरा.., मेहबूब की हंसी…,
मेहबूब के उस नूर पर…,
बस फिदा से हम रहते थे…,
उनकी हर एक बातो को..,
बस ख़ामोशी से सुनते थे…!
उनका आना.., नज़रे झुकाना..,
प्यार से हमको सलाम कर जाना..,
मोहब्बत में रूठे.., जो हम उनसे..,
तो जाने.., कैसे- कैसे.., उनका हमे हंसाना…!
वो मोहब्बत थी हमारी…,
क्या कहे यारो…,
कितना सुकून दिलाती थी..,
हर पल ही यारो.., कितना हमे हंसाती थी..!
चलते चलते राह डगर में..
हर एक मुश्किल को झेल गए..,
देखो यारा..! मोहब्बत में हम…,
कितना दर्द सहन गए…!
कभी इस पल.., कभी उस घड़ी..,
हर पल ख्यालों में खोई हूं..,
केसे बताऊं जाना तुमको..,
कितना यारा रोई हूं…!
मोहब्बत बनाई.., नमाज़ी भी..,
मोहब्बत ने दिए कितने अहसास…,
मोहब्बत बनाएं बा- किरदार…,
मोहब्बत में लिए इल्ज़ाम भी…!
मोहब्बत, मोहब्बत,और मोहब्बत में…,
बस ये मोहब्बत ही सब पर तारी थी…,
दिल से पूछे कोई हमारे…,
हर दर्द यही संभाले थी….!
मेहबूब का हाथ.., छोटी सी नाक…,
दाढ़ी से सजा.., नूर भरा गाल..,
उफ्फ…, शायद, ये मोहब्बत ही तो जिलाई थी..!
गर ना होती.., मेहबूब की मुस्कुराहट..,
हम तो यारो मर जाते…,
खुदकुशी हराम थी यारो..,
वरना कबके गुजर जाते…!
रोते रहते.., तन्हा यारो..,
ना एक पल दिल लगाते थे..,
ख़ामोशी थीं.., तन्हाई थी..,
हर पल ख़ुदको घुटाते थे.!
आता ख्याल रह – रह कर..,
क्यूं कर ये ज़िद करे..,
क्यूं कर तू झूठी हंसे..,
क्योंकर ये दर्द भरे..!
चल ख़तम करदे ज़िन्दगी..,
ना मोहब्बत इसमें बाकी है कोई…,
फिर फतवा निकला मोहब्बत का..,
“खुदकुशी हराम है..,
खुदकुशी हराम है”…!
हम भी लोट आए घर को यारा…,
के मौत भी बे- हाल है..!
गर ना होती खुदकुशी हराम..,
आधी दुनिया ख़तम हो जाती..,
सहता ना कोई दर्द मोहब्बत का…,
ना मोहब्बत यूं अमर हो पाती…!!
ना मोहब्बत यूं अमर हो पाती…!!
Lazawab
Shukriya