मैं खुद से कुछ इस तरह नज़रें चुराती हूं..,
उसके पूछे सवालों पर चुप-सी हो जाती हूं ..!
दिलाऊं दिलासा झूठा भी तो खुद ही घबरा जाती हूं…,
दिल किसी का तोड़ ना दूं यह सोच ही रह जाती हूं..,
करता दिल बहुत है उसकी बातें सुनने को..।
गर कर-ना दे ख्वाहिश वो आवाज एक मेरी सुनने की..,
बस ख्याल यह आते ही चुप-ही हो जाती हूं..।
उठाकर नजरे देखने की हिम्मत न जुटा पाती हूं..,
तोड़े ख्वाब इतने हैं कि नज़रें ना मिला पाती हूं…।
आईना भी देख अब शर्माने को कहता है..,
कुछ करने के लायक ना खुद को समझ पाती हूं।
टूट चुकी हूं अंदर ही अंदर ,नफरत-सी खुद से करती हूं..,
बातें करनी है हजारों तुमसे.., पर बोल अब नहीं पाती हूं..!
मैं खुद से कुछ इस तरह बस अब नजरें चुराती हूं..।।.
Painful
Hmm