शिद्दत- ए- गम हद से बढ़ता ही जा रहा हैं…,
ख़ुशी की उम्मीद में .., आंखों का पानी बढ़ता जा रहा हैं..!
कोई रोक ले…, इस बहते अक्श के दरिया को…,
अब दिल का दर्द म्रज बनता ही जा रहा हैं…!
मरीज़ हुए भी तो अपनों के हाथों…,
अपनों के लिए अब झूठे हंसते है होठ…,
शिद्दते- गम में बिलखता -सा जा रहा हैं….!
घूट- सा गया हैं गला हमारा…,
बस चुभन- सी दिल मै बढ़ रही हैं…!
अब वक़्त घुट- घुट मरने का…,
ओर करीब होते रहा हैं..!
रोने पर हंसना…, हंसी पे रों देते हैं…,
अब किसे कहे दर्द- दिल का…??
ये अन्दर ही अन्दर बढ़ता जा रहा हैं….!
कभी हसाने लोगो को…! खुद ही तमाशा बने हैं हम…।
जाने क्यूं हंसाते- हंसाते लोगो को..??
सर्कस – सा माहौल बनता जा रहा हैं…!
समझा जिनको हर दम साथी….,
उन्हीं से पल्लू झाड़ा जा रहा हैं…!
अब हंसी का बहाना देकर…,
हमको ही गाढ़ा का रहा हैं…!
ख़ुशी देखे जो गढ़ने पे हमारी…,
अब गढ़ने पे मज़ा आए जा रहा हैं…!
देख लबों पे मुस्कुराहट उनकी…,
अब मरने का मजा आए जा रहा हैं…,
अब मरने का मजा आए जा रहा हैं…।।