कभी देखते राजस्थान को…,
कभी भारत नज़र आता है…।
पहाड़ों से निकलते बच- बचाकर…,
नदियों में भूगोल घुमाता हैं..।
पल – पल बढ़ती ये तारीखें….,
तारीखों पे सवाल घुमाता हैं ..।
एग्जाम आए बच्चो के ..,
कभी स्कूल का प्रांगण दिखता है।
कहता कोरोना घर बैठो…,
कभी मास्क लगा बाहर बुलाता हैं…।
कभी देखते हम किताबो को…,
तो रोज़गार याद आता है….।
ऊपर से ये एग्जाम सेन्टर हमारे….,
जगह – जगह घूमाते है…।
लॉकडाउन में देखो हमको..,
भर्मण- सा करवाते है…।
किताबो का चक्रव्यूह ये …,
ऑनलाइन ही चलाता है….।
देखो – देखो वक़्त हमारा….,
कितना हमें सिखाता है…।
बने डॉक्टर हम खुद ही घर में..,
कभी सेवक भी बनाता है….।
कभी विद्यार्थी .., कभी शिक्षक बन ..,
आत्मविश्वास हम-में जगाता है….।
अच्छाई -बुुराई सब इसमें ..,
इस पल में ही समाया है…।
उजागर कर सब गुणों को..,
सजग हम बनाया है….।
कॉरोना ने बनकर शिक्षक..,
कितना हमें पढ़ाया है…।
बताकर हमारे ही गुणों को..,
जागरूक हमें बनाया है….।
धन्यवाद तो इसका भी…,
एक बार तो बनता है।
ऐसा ज्ञान हर कहीं पे..,
ऐसे ही नहीं मिलता है..।