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प्रकृति और अश्क… #खुशी #नमी #सुकून #जिंदगी

जिंदगी के ऐसे मझदारो में खड़े हैं हम..,

कि जिंदगी कुछ हमें समझ नहीं आती….।

हम दिखते सबको पैरों पर खड़े है….,

पर कदम हमारे लड़खड़ायें-से हैं….।।

हम दिखते सबको मुस्कुराते हुए…,

पर आंखों में नमी लाएं-से है…।

हम हंसते हैं , खेलते हैं..,

खूब बिन-बात भी हंस जाते हैं..!!

क्या-क्या सितम कहे लबों के…,

हम दिल ही दिल में.., अश्को के दरिया बहाएं से है..।

हम समझते थे खुद को .., अक्श मुकम्मल…,

अब टुकड़ा-सा खुद को बताएं-से हैं…..।।

हम टूटे पेड़ के पत्तों से…,

बस खुद-को हवा संग…, उड़ाए-से है….।

हम समंदर की गहराई को….,

दिलो में छुपाए से है….।।

हम पहाड़ों से भी ऊंचा उठकर…,

जाने कैसे मुस्कुराए हुए हैं….?

यह बहती हवाएं…, यह गिरती बारिश…,

आंखों को हमारी बहलाए हुए हैं…..।।

अर्श कहता है रोलें खुलकर…,

बूंदों में अश्क छुपाए हुए हैं….।

यह मिट्टी भी अश्क बांटने को आती है…..,

जाने कितने दर्द दफनाए हुए हैं…।।

कहती मिट्टी चुपके से रोलें…,

अश्कों को मैंने छुपाए हुए हैं….।

छाप तक ना रहने देती अश्क का…,

धुआं सब बनाए हुए हैं….।।

बहती हवा…., उड़ते पत्ते…,

समुद्र की गहराई …., चलता आसमान…।

हर एक दर्द को बांटे हुए हैं…।।

इंसान नहीं है फिर भी जाने…,

कैसी इंसानियत दिखाएं हुए हैं…।

मेरे गम में शरीक होकर….,

मुझे रुलाकर ..,थोड़ा हसांकर.., फिर मुझे मुस्काएं हुए है..।।

4 Replies to “प्रकृति और अश्क… #खुशी #नमी #सुकून #जिंदगी

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