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बाबा मैं जिम्मेदार हुईं #बेटी से बहू का सफर #जिम्मेदारियां

आज अचानक से ही देखो, केसे में बड़ी हुई.।
कल तक थी बाबा की बिटिया…,
इक रात में ही बहू हुई..!

खाना- पीना कपड़े, बर्तन…,
ये सब ना मुझको आते थे।।
बिस्तर में ही देखो मुझको चाय तक मिल जाते थे..।

उगता सूरज.., दिन ढले तक…
मैं खूब धूम मचाती थी..!
बाबा के आंगन मै देखो..,
कितना शोर मचाती थी…!!

आया रिश्ता एक लड़के का…,
मै बच्ची से देखो बड़ी हुई..।
बाबा के आंगन मै खेलती..,
एक पल से ससुराल चली..।।

थमती सांसे.., चुप्पी- भरा मुख..,
खामोशी सी इख्तियार हुई…!
सबसे पहले उठकर आज…,
देखो मै जिम्मेदार हुईं…!!

नहा धोकर.., कर साफ़- सफ़ाई..,
नाश्ते तक इंतजाम किया..!
बन सवर कर , खूब सवर कर.,.
देखो मै जिम्मेदार हुईं।।

कभी जो कहती थी मां मुझसे..??
ससुराल में क्या कुछ कर लेगी…!
देखो आज बिटिया तुम्हारी..,
कितनी जिम्मेदार हुई..!!

लोगो के कहने से पहले ..,
हर काम में कर देती हूं..!
देखो आज सबके दिलो का..,
कितना ख्याल रखती हूं..।।

दोस्त, साथी , खेल खिलौने..,
तक को मैने भुला दिया..!
बाबा देखो मैने भी अब ..,
अपना घर बना लिया…!!

कभी जो खेलती गुड्डा- गुड्डी..,
अब खुद में वो किरदार हुई…।
अंजाने – अचानक जिम्मेदारी से..,
देखो दो – चार हुई…।

याद आता वो पल मुझको..,
जब रों तक मै जाती थी..!
मनाने अपनी ज़िद को देखो…,
कितना खूब सताती थी..।

बेटी – बहू के सफर में..,
हर पल में बदलाव हुई.!
देखो आज बाबा मुझको..,
कितनी मै जिम्मेदार हुई।।

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