हाथो की मेहंदी हमारी..,
खुशबू- सी बिखेरती है..!
उस पर उनकी फरमाइशें….,
हर दिल कहर बिखेरते हैं..!!
हर बार सोचते मेहंदी लगाने…,
देख- देख डिजाइन रह जाते है..!
ये नहीं…, वो नहीं…, पसंद उनकी ढूंढ़ते हैं…!
मेहंदी के इन खोजो में..,
खोज- खोज रह जाते हैं…!!
सूने हाथ.., बिन मेहंदी के..,
बिन मेहंदी ही रह जाते हैं…!
कभी दिखती दुल्हन डिजाइन..,
कभी अरबी पसंद आती हैं…!!
फिर याद आती फूल- पत्ती भरी फरमाइश उनकी…,!
बस फरमाइश ढूंढे रह जाते हैं…!!
तलाश में मेहंदी के हम…,
तलाशते ही रह जाते हैं…..!
इन्तजार रहता पसंद मिलने उनकी…,
इन्तजार में ही रह जाते हैं…!!
डिजाइन पसंद उनकी मिले…,
आस लगाए हाथ हमारे..,
फिर सूने रह जाते हैं….!
फिर सूने रह जाते है..!!