मैं गुड़िया बाबा की लाडली…
मां के आंगन का फूल हूं मैं…!
पिता की मजबूत बाजू तो…,
अपनों का गुरूर हूं मैं…!
मैं खिलती हू खिल उठ – ने को…,
घर मेरा खिल जाता हैं…!
जो रों दूं मै दर्द में तो….,
घर मेरा उदास हो जाता हैं…!
मैं बढ़ती हूं बढ़ जाने को…,
दुनिया ही बढ़ जाती है..!
मैं लड़ती सम्मान पाने को…,
सम्मान सा पा जाती हूं…!
मैं हूं बहादुर वीरो जैसी…,
हर कदम वीरता दिखती हूं..!
मै लड़ती, समाज , बुराई से..,
पग पग गिराई जाती हूं…!
ना थकती में मशीनों जैसे…,
हर मुश्किल पार कर जाती हूं…!
जोड़ती अपनों के दिलो को..,
सबका मान बढ़ाती हूं…!
मै बहू हूं किसी आंगन की…,
तो कहीं मां का रोल निभाती हूं..!
मै निरछल हूं…, निर्डर हूं….,
पानी सी बहती जाती हूं…!
मै गुड़िया बाबा की लाडली…,
हर घर महकाती जाती हूं…।
Speech less .
Aut standing
Tyyy bhabhi
Awesome
Ty siso
Superb
Waah bhati g kya likhte ho …chhaaa gaye
Ty sir..