मैं टूट कर पूरी तरह से… अपने मेे ही समायी हूं…।
टूट कर, बिखर कर…, मैं अहदे वफा निभाई हूं….।
हां नहीं निभा सकी .., अभी तक वो वफाएं मुकम्मल….।
मै हर अंजाम मेे .., उस वफ़ा को याद दिलाई हूं….।
मैं गिरी हूं.., टूटी हू…., टूट-टूट कर फिर जुड़ी हूं….।
मै दिखने को जिस्म का पूतला हू…,
अपने अंदर.., लिए कितनी तन्हाई हू….।
मै लड़ती हूं.., झगड़ती हूं….,कुछ देख…, चुप हो जाती हूं।।
फिर सोचती हूं…., झगड़ती हूं…..।
खुद ही को खुद मेे….., दफनाती हूं…।
मैं करती कोशिशें बहुत हू यार….!
मोहब्बत अपनी पाने को…..।
मै अपने ही अंदर जाने…, कितने ज़ख़्म छुपाए हूं..।
किसी के लिए पागल लड़की..,
तो किसी को अहसास मोहब्बत का दिलाई हूं…।
मै केसे बताऊं.., मोहब्बत को तुम्हारी…,
कैसे दुनिया से बचाई हू…..??
हर रोज मनाती रहती हूं सबको…।
डर कर ना आंसू गिराई हूं…।
एक डर जाने मुझको क्यू…???
एक पल जुदाई का लगता है…।
एक डर जाने मुझको क्यू???
हर पल तनहाई का लगता है…।
इस डर में ही.., डर डर कर..,
मै खुदको मजबूत बनाई हूं….।
गिराकर अपने स्वाभिमान को…,
मै दामन तक फैलाई हूं…।
जोड़कर हाथ…, रो रो कर …,
मैं मिन्नते खुद से कराई हूं…।
ये ना समझना तारीफो के… पुल मै खुदके लाई हूं…
याद रखना मै हर कदम पर….!
सिर्फ तेरे लिए….., तेरी होकर…., हर एक रिश्ता निभाई हूं।।
Mashallah , it’s true %, Allah madad gaar he