हां.., आज हम पास नहीं..,
फिर भी कोई डर नहीं..!
जाने क्यू आज फिर ये दिल…,
यकीं करने को कहता है..!!
उड़ जाऊं आसमां में …,
हवाओं के संग…!
ये दिल.., फिर जीने को कहता हैं..!!
हां…, नहीं हैं डर दिल में कोई…,
ना नमी हैं अब आंखो मै…!
जाने क्यूं…? ये उम्मीदें…,
टूटने की जगह पर बढ़ाने को कहती
हैं…!!
रख लूं यकीं उस रब पर…,
फिर ये ख्वाबों की ताबीरे कहती हैं…!
कर लूं यकीं हर चीज पर…,
फिर ये मेरा दिल कहता हैं….!!
आज डर ओर ख़ुशी दोनों साथ हैं…,
फिर भी ख़ुशी से डर को जीने को कहती हैं..!
करेंगे सामना.., डर का हम भी..,
डर – डर मै उम्मीद लगानी हैं…!!
पर इस बार उम्मीदों का सागर….,
बस अपने तक ही निभानी हैं..!
ना किसी को दें उम्मीदें..,
ना कोई उम्मीद लगानी हैं…!!
बस यकीन के दम पर…,
दूर रहकर…, हर उम्मीद निभानी हैं…!
इंतजार हर उम्मीद के….,
अब पूरा होने का करना हैं…!!
मुझे अब हर पल बस उम्मीदों मै जीना हैं..,
गर जो टूटी उम्मीदें मेरी…,
ना अब मैं फिर.., मुडूंगी पीछे…!
आगे- आगे ओर आगे..,
बस अब बढ़ते जाना हैं….!!
होना स्वार्थी बन्द होगा…,
हर रिश्ता दूर से निभाना हैं….!
मोहब्बत को अपनी .., फिर….
उम्मीदों का ज़ाम पिलाना है..!!
पर इस बार ये मोहब्बत..,
बस दूरी से निभाना हैं…!
बस दूरी से निभाना हैं…!!
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