कैसे कह दूं मोहब्बत की हूं बस….,
एक मोहब्बत मेरे मां- बाप ने भी तो निभाई है..,
ओर.., केसे कह दूं के वो कुछ नहीं मेरे लिए….,
हर कदम मोहब्बत उसने भी निभाई हैं…!
हां…! हूं मजबुर हालातों में..,
ना इधर की जानिब जा सकूं…,
ना उधर किसी को खो सकू…!
और.., उसे छोड़ने का नाम ना ले कोई….।
उसे…, छोड़ने का नाम ना ले कोई….,
थोड़ी- थोड़ी ही सही मोहब्बत सच्ची निभाई हैं..!
पल- पल रोई हूं अपनों की खातिर..,
तो .., उसके लिए भी आंखे भर आयी है….!
माना के सब कुछ है.., अपने मेरे….!
पर उसको भी तो ज़िंदगी बनाई हूं…,
हां..! अपनों के बाद ही सही..,
पर., नाम हर दुआ में शामिल कराई हूं….!
काटना नहीं चाहती अपनों की बाते…,
पर कुछ ना होकर भी सब – कुछ है वों मेरा ….,
कुछ तो इस बात में भी यारो सच्चाई है…!
हां…! तड़प गई हूं., इस हेर- फेर में…,
ना इधर जा सकती हूं…, ना उसे पा सकती हूं..,
एक रास्ता इधर चलती तो…, हाथ उसका छूटता है…!
एक राह उधर चलती तो.., साथ अपनों का छूटता है…!
ना.., समझ कोई.., इधर की करे…!
ना.., साथ कोई…, उधर से दे…!
ना.., थामता कोई दिल को मेरे….,
ना..! समझने को कोई तैयार है…!
कैसे कह दूं छोड़ दें कोई…..??
दोनों जगह प्यार बे – शुमार हैं…!
निभाया हर रिश्ते को बड़ी ईमानदारी से…,
करी हर एक नाकाम कोशिशें भी…,
पर बे – अदब ना किया करे कोई…!
हां..! बिक से गए है.., मोहब्बत के बाजारों में कहीं…,
अच्छे – बुरे सारे अल्काब भी लगवाए है…!
कुछ लगे दामन में दाग.., तो सीने में छुपाए हैं..!
लबों पर रखी झूठी हंसी…,ओर आंखों में नमी को छुपाए हैं…!
कैसे कह दूं ये नहीं मेरा…!
मैने हर जगह बराबर प्यार लुटाए हैं…,
और…, ना हो सकेगी बे – अदबी अपनों की..,
ना…, मोहब्बत को छोड़ पाएंगे..!
करते रहे दोनों अपनी- अपनी तरफ बाते…,
अब हम मोहब्बत को अपने दिलों में ही निभाएंगे…!
और .., जो हुआ नाम शुमार बे – वफाओं में…,
हर जगह छा – से जाएंगे…!
मोहब्बत की दौड़ के अपने या मोहब्बत में….???
हम हमेशा फैल हो जाएंगे…!
हमेशा फैल हो जाएंगे..!!
100%
Mohabbat ki raah me fail hote he log…
Right..bestii..